Friday, February 11, 2011

आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman

क्या मौत के बाद भी जीवन है ?
और अगर है तो कैसे और कहां ?
दुनिया के हरेक इंसान के मन में यह सवाल उठता है और दुनिया के तमाम दार्शनिकों ने इस विषय में तरह तरह की कल्पनाएं भी की हैं। आवागमनीय पुनर्जन्म की कल्पना एक ऐसी ही कल्पना है जिसका आधार दर्शन है न कि ईशवाणी।
इसलाम ऐसी कल्पना को असत्य मानता है। इसलाम के अनुसार इंसान की मौत के बाद उसके शरीर के तत्व प्रकृति के तत्वों में मिल जाते हैं लेकिन उसका ‘नफ़्स‘ अर्थात उसके वुजूद की असल हक़ीक़त, उसकी रूह आलमें बरजख़ में रहती है और वहां अपने अच्छे-बुरे अमल के ऐतबार से राहत और मुसीबत बर्दाश्त करती है। एक वक्त आएगा जब धरती के लोग अपने पापकर्मों की वजह से धरती का संतुलन हर ऐतबार से नष्ट कर देंगे और तब क़ियामत होगी। धरती और धरती पर जो कुछ है सभी कुछ नष्ट हो जाएगा। एक लम्बे अंतराल के बाद वह मालिक फिर से एक नई सृष्टि की रचना करेगा और तब हरेक रूह शरीर के साथ इसी धरती से पुनः उठाई जाएगी। इस रोज़े क़ियामत में अगले-पिछले, नेक-बद, ज़ालिम और मज़लूम सभी लोग मालिक के दरबार में हाज़िर होंगे और तब मालिक खुद इंसाफ़ करेगा। उसकी दया से बहुतों की बख्शिश होगी, बहुतों का उद्धार होगा लेकिन फिर भी ऐसे मुजरिम होंगे जिन्होंने ईश्वरीय विधान की धज्जियां उड़ाई होंगी, वे समझाने के बावजूद भी न माने होंगे, अपनी खुदग़र्ज़ी के लिए उन्होंने इंसानों का खून चूसने और बहाने में कोई कमी हरगिज़ न छोड़ी होगी। इन्हें उम्मीद तक न होगी कि कभी इन्हें अपने जुल्म और ज़्यादती का हिसाब अपने मालिक को भी देना है। ऐसे मुजरिम उस दिन अपने रब की सख्त पकड़ में होंगे। उस पकड़ से उन्हें उस रोज़ न तो कोई ताक़त और दौलत के बल पर छुड़ा पाएगा और न ही कुल-गोत्र और सिफ़ारिश के बल पर। उस दिन इंसाफ़ होगा, ऐसा इंसाफ़ जिसके लिए दुनिया में आज हरेक रूह तरस रही है। जो ईमान वाले बंदे होंगे, उन्हें उनकी नेकी और भलाई के बदले में सदा के लिए अमन-शांति की जगह जन्नत में बसा दिया जाएगा और दुनिया में आग लगाने वाले संगदिल ज़ालिमों को सदा के लिए जहन्नम की आग में झोंक दिया जाएगा। न तो आलमे-बरज़ख़ से कोई रूह लौटकर इस ज़मीन पर दोबारा किसी गर्भ से जन्म लेती है और न ही जन्नत या जहन्नम से ही कोई रूह यहां जन्म लेगी।
पाप के लगातार बढ़ने के बावजूद दुनिया की आबादी में रोज़ इज़ाफ़ा ही हो रहा है । जिससे यही पता चलता है कि आवागमनीय पुनर्जन्म महज़ एक दार्शनिक कल्पना है न कि कोई हक़ीक़त। अगर वास्तव में ही आत्माएं पाप करने के बाद पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की योनियों में चली जाया करतीं तो जैसे जैसे पाप की वृद्धि होती, तैसे तैसे इंसानी आबादी घटती चली जाती और निम्न योनि के प्राणियों की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला जाता, जबकि हो रहा है इसके बिल्कुल विपरीत। इसी तरह दूसरे कई और तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं।

Tuesday, February 8, 2011

‘नफ़रतों का हो ख़ात्मा , इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है‘ Divine unity


फलाहारी बाबा के साथ संतुलित आहारी अनवर जमाल
आपका भाई अनवर जमाल, निज़ामुद्दीन दिल्ली में
डाक्टर असलम क़ासमी


Dr. Ziauddin Ahmad, Assistant Director (Unani Medicine),
Ministry of health and family welfare , govt . of इंडिया &
Mr . R . S. Adil Advocate (Left)
मानव जाति एक है। इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है। इस्लाम के मानने वालों ने खुद कई मत बनाए और एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाए और कई बार वे इसमें हद से आगे भी निकल गए। इसका नुक्सान उन्हें हुआ और उनके साथ मुल्क और दुनिया की दूसरी क़ौमों को भी हुआ। दूसरी क़ौमों से उन्हें व्यंग्य भी सुनने को मिले और यह स्वाभाविक था। दूसरी क़ौमों के तर्ज़े अमल और उनके सुलूक ने उन्हें अपना जायज़ा लेने पर मजबूर किया और कुछ दूसरे दुखदायी हादसों ने उन्हें बताया कि सबके लिए एकता ही नफ़ाबख्श और बेहतर है।
पिछले दिनों हमारे एक सत्यसेवी मित्र जनाब सुहैल ख़ान साहब का रामपुर (उ.प्र.) से फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि कल यानि कि दिनांक 27 जनवरी 2011 को रामपुर में तमाम मुस्लिम मतों के ज़िम्मेदारों ने अपने इख्तेलाफ़ात भुलाकर एक जमाअत गठित की है, जिसका नाम ‘इत्तेहादे मिल्लत‘ रखा गया है। इसके अध्यक्ष बरेलवी समुदाय से हैं जिनका नाम है सज्जादानशीन जनाब फ़रहत जमाली। ये रामपुर की सबसे बड़ी दरगाह हाफ़िज़ शाह जमालुल्लाह साहब के सज्जादे हैं। इसका सचिव जनाब हामिद रज़ा खां साहब को चुना गया है। हामिद साहब सुहैल भाई की तरह ‘वेद-कुरआन‘ के संदेश का प्रचार एक लंबे समय से कर रहे हैं। उनके अलावा बहुत से भाई-बहन ऐसे हैं जो विश्व एकता के लिए काम कर रहे हैं। इन्हीं भाईयों की दुआओं और कोशिशों का नतीजा है कि रामपुर में सभी मुस्लिम फ़िरक़ों के ज़िम्मेदारों ने एकता की ओर क़दम बढ़ाए। मालिक उनसे सेवा का काम ले, केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि हरेक इंसान के लिए।
‘नफ़रतों का ख़ात्मा हो‘ ऐसी ख्वाहिश सिर्फ़ रामपुर वालों की ही नहीं है बल्कि रामपुर से बाहर भी ऐसी ही ख्वाहिश देखी जा सकती है। कल एक ब्लागर प्लस मीटिंग में भी यही देखने में आया। समाज से नफ़रतों का ख़ात्मा हो और लोगों में एक दूसरे के प्रति विश्वास बहाल हो, लोगों का चरित्र और उनकी आदतें बेहतर हो, मुल्क और समाज में अमन क़ायम रहे, लोग उस वचन को पूरा करें जो कि वे नमाज़ में रोज़ाना अपने मालिक से करते हैं और वे कुरआन के बताए उस सीधे रास्ते पर चलें जिसकी दुआ वे खुद नमाज़ में बार-बार करते हैं। इस मक़सद के लिए ‘अंजुमन ए तहफ़फ़ुज़े इस्लामी (रजिस्टर्ड) काफ़ी समय से अपने स्तर पर कोशिश करती आ रही है। इस अंजुमन की बुनियाद दिल्ली में जनाब रफ़ीक़ अहमद साहब, एडवोकेट ने रखी थी। आजकल इसके सद्र जनाब मुहम्मद ज़की साहब हैं। इस तंज़ीम के सभी सदस्य उच्चशिक्षित और समाज के प्रभावशाली लोग हैं। वे देश विदेश के बड़े-बड़े मुस्लिम स्कॉलर्स के प्रोग्राम कराते आये हैं। जनाब ऐजाज़ हैदर आर्य साहब, डिप्टी डायरेक्टर आल इंडिया उर्दू तालीम घर लखनऊ के ज़रिये हमारी कोशिशें उनके इल्म में आईं तो उन्होंने हमसे मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। एक्सीडेंट की चोटें तो तक़रीबन ठीक हो चुकी थीं लेकिन मैं थोड़ा सा बीमार था और फिर अगले ही इतवार को जनाब डाक्टर अयाज़ अहमद साहब की शादी में भी दिल्ली जाना था। मैं कुछ कशमकश में था लेकिन मास्टर अनवार अहमद साहब और डाक्टर अयाज़ साहब ने कह दिया कि आपको तो चलना ही पड़ेगा। बहरहाल हम चले और पहुंच गए दिल्ली। सबसे पहले पहुंचने वालों में हम तीन लोग थे मैं खुद, डाक्टर असलम क़ासमी और मास्टर अनवार साहब। थोड़ी ही देर बाद डाक्टर अयाज़ साहब भी कुछ और साथियों के साथ पहुंच गए और इसी दरमियान उनकी अंजुमन के लोग भी आना शुरू हो गए और उनके बुलाए हुए मेहमान भी। हम सभी का एक दूसरे से तआर्रूफ़ हुआ और फिर हरेक ने अपनी अपनी सोच और तजर्बों को भी शेयर किया। इसी बीच नाश्ता भी हुआ, जुहर की नमाज़ भी हुई और फिर लंच भी हुआ।
लंच में कितनी तरह की वेज और नॉनवेज डिशेज़ थीं, उनके न तो नाम ही पता हैं और न ही ठीक से उन्हें गिनना ही संभव है। यही हाल फलों, चटनियों और मिठाईयों का था। जनाब मुहम्मद ज़की साहब ने अपनी तरफ़ से अहतमाम में किसी भी तरह की कोई कमी न छोड़ी थी। इस बीच वे और उनके साहबज़ादे खड़े रहे और इसरार करके खिलाते रहे। खाने की तारीफ़ करते हुए जनाब आर. एस. आदिल साहब ने कहा कि साहब अगली बार का इंतज़ार रहेगा। उनकी इस सीधी और बिल्कुल सही बात पर सभी मुस्कुरा दिए।
जनाब आर. एस. आदिल साहब ने इस्लाम को एक जीवन पद्धति के तौर पर स्वीकार करने के बाद एक संक्षिप्त पुस्तिका भी लिखी है जिसका नाम है ‘डा. अंबेडकर और इस्लाम‘। यह किताब हिंदुस्तान में बहुत मक़बूल हुई और कई भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ। उनका कहना है कि मैंने डाक्टर अंबेडकर का साहित्य इतना ज़्यादा पढ़ा है कि शायद किसी अंबेडकरवादी ने भी इतना ज़्यादा न पढ़ा हो। आदिल साहब एक एडवोकेट भी हैं। उनके दो जवान बेटे भी उनके साथ आए थे। इस मजलिस में एक और नौजवान इबराहीम दानिश अलसऊद साहब से भी मुलाक़ात हुई जो कि अपने वालिद साहब के साथ जामा मस्जिद दिल्ली से तशरीफ़ लाये थे।
डाक्टर ज़ियाउद्दीन अहमद साहब से भी यहीं मुलाक़ात हुई। ये दिल्ली में एक ऊंचे ओहदे पर काम करते हैं।
दिल चाहता था कि हम दिल्ली में हैं तो कम से कम शाहनवाज़ भाई से तो मुलाक़ात हो ही जाए। उन्हें हमने बुलाया तो मालूम हुआ कि आज उनके छोटे भाई के आफ़िस की ओपनिंग है लेकिन फिर भी वे थोड़ी देर के लिए आए और लंच से पहले ही चले गए। लंच के बाद भी समाज की बेहतरी के लिए कुछ किए जाने को लेकर बातें होती रहीं। जनाब शमीम अहमद साहब और जनाब रफ़ीक़ अहमद एडवोकेट साहब ने बार बार इस बात पर ज़ोर दिया कि मसलक की बुनियाद पर बंटवारे का ख़ात्मा होना चाहिए। जनाब ज़की साहब ने डाक्टर असलम क़ासमी साहब से पूछा कि क्या ज़कात की रक़म को दावती कामों में ख़र्च किया जा सकता है। डाक्टर असलम क़ासमी साहब ने बताया कि ‘मौल्लिफ़तुल कुलूब‘ की एक मद ज़कात के मसरफ़ में शामिल है और यह मद दावत की मद में ही आती है।
जब मसलकी नफ़रतों के ख़ात्मे का ज़िक्र आया तो मैंने जनाब सय्यद मुहम्मद मासूम साहब का भी उड़ता हुआ सा ज़िक्र किया और कहा कि ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं और हरेक मसलक में हैं जिनके दिल अपने मसलक के उसूलों की पाबंदी के बावजूद नफ़रत से ख़ाली हैं। ऐसे लोग आज भी ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं।
कब वक्त गुज़र गया, पता ही नहीं चला और जब हम घर वापस पहुंचे तो रात के 11 से ज़्यादा बज चुके थे।
इस नशिस्त का ज़िक्र मुकम्मल करने से पहले मैं यह भी बताना चाहूंगा कि हमने दिल्ली में महंत स्वामी रामकृष्ण दास जी से भी मुलाक़ात की। वृंदावन में इन्हें फलाहारी बाबा के नाम से जाना जाता है और परिक्रमा मार्ग पर ‘श्री गोरेदाऊ आश्रम‘ के नाम से इनका आश्रम है। स्थायी रूप से ये ‘श्री बद्रीनारायण मंदिर, शांति आश्रम, जिलतरी घाट, जबलपुर (म.प्र.)‘ में रहते हैं। हमने बाबा जी को ‘वंदे ईश्वरम्‘ पत्रिका के साथ एक पुस्तिका ‘आपकी अमानत आपकी सेवा में‘ भेंट की। जिसे देखकर उन्होंने बहुत सराहा। उनके साथ हमारी मुलाक़ात अच्छी रही। उनसे मिलकर हम निज़ामुद्दी वेस्ट पहुंचे। जहां यह उम्दा नशिस्त अंजाम पाई और जहां सभी हाज़िरीने मजलिस ने मुल्क और समाज की बेहतरी के लिए नफ़रतों को मिटाने के लिए आपस में एक दूसरे की हर संभव मदद करने का संकल्प लिया। दरअस्ल संकल्प तो ये सभी लोग पहले से ही लिये हुए थे। इस मजलिस में तो उसे मिलकर दोहराया भर था ताकि संकल्प ताज़ा हो जाए।
उन्होंने हमें ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ और ‘इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद साहब‘ ये दो किताबें दर्जनों से भी ज़्यादा भेंट कीं। इन दोनों किताबों को आप ‘इस्लाम इन हिन्दी‘ पर देख सकते हैं।

Monday, February 7, 2011

A blogger plus meeting in Delhi


कल दिल्ली में एक ब्लोगर प्लस मीटिंग हुई. जिसमें कुछ अहम् मुद्दों पर बात हुई .
इसके बारे में जानकारी बाद में दी जाएगी पहले आप इन फ़ोटोज़  का लुत्फ़ उठाइए .
इस मीटिंग में जिन लोगों को आप जानते हैं उनमें  एक तो मैं खुद ही हूँ .
डाक्टर असलम क़ासमी, डाक्टर अयाज़ अहमद और शाहनवाज़ भाई भी इस उम्दा मीटिंग में मौजूद थे.
इस मीटिंग में सभी मुस्लिम थे जो कि उच्च शिक्षित भी थे और सभी दिल्ली में ऊंचे ओहदों पर मुल्क के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं .

Sunday, February 6, 2011

MUTUAL UNDERSTANDING BY ABDULLAH TARIQ SAHEB(2)



VIEW TODAY EXCEPTIONAL VIDEO ABOUT
THE RELATIONSHIP OF ANCIENT INDIANS WITH HAJ PILGRIMAGE
YOUR KIND VIEWS ARE SOLICITED.

Thursday, February 3, 2011

'मुल्क में पहले इस्लामी बैंक को हरी झंडी' Islamic banking in India

आज उर्दू दैनिक राष्ट्रीय सहारा में एक खबर (पृष्ठ 3) नज़र पड़ी जिसका शीर्षक है 'मुल्क में पहले इस्लामी बैंक को हरी झंडी'।
फिर मैंने पूरी ख़बर पढ़ी तो पता चला कि केरल हाईकोर्ट ने कल उस अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया जो प्रदेश सरकार के इस्लामी बैंक शुरू करने के ख़िलाफ़ दायर की गई थी । यह अर्ज़ी जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रामण्यम स्वामी व अन्य ने दायर की थी। इस अर्ज़ी को ख़ारिज करने वाली बैंच में हैं चीफ़ जस्टिस जयचलामेश्वर और जस्टिस पी. आर. रामचन्द्र मेनन।
बाधा खड़ी करने वाले भी हिंदू और उसे हटाने वाले भी हिंदू और इस देश में इस्लाम को लाने वाले भी हिंदू और इस्लाम को अपनाने वाले भी हिंदू । हिंदू मज़बूत कर रहे हैं इस्लाम को और इस्लाम मज़बूत करेगा अपनी शरण में आने वाले हिंदुओं को। इस तरह हिंदुस्तान रोज़ ब रोज़ मज़बूत होता चला जाएगा।

देख लीजिए ! इस्लाम को फैलने के लिए न किसी औरंगज़ेब की ज़रूरत है और न ही किसी तलवार की । यह फैलता है अपने कल्याणकारी और सत्य होने की वजह से । वह कौन सा दिल है जिसमें सत्य और कल्याण की इच्छा न हो ?
और मनुष्य की इस इच्छा को इस्लाम के अलावा कोई और व्यवस्था पूरी कर नहीं सकती , यह भी सत्य है ।

Tuesday, February 1, 2011

पंडित जी क्यों तुड़वाना चाहते हैं मूर्ति और मज़ार ? Bad wish

पछुआ पवन (pachhua pawan): To Dr Anwar Jamal On अब बताईये कि आपको मेरी किस बात पर ऐतराज़ है ?
http://www.123muslim.com/islamic-art/259-dargah-sharif-hazrat-pir-haji-ali-shah-bukhari-r.html
श्री पवन कुमार मिश्रा जी से हमारा संवाद चल रहा था। इसी दरमियान वे बोले कि
'हिन्दुस्तान में जितने गंडे ताबीज़ मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त किये जाते है जितनी मजारे बनी है उन मजारो की परस्ती में आप भी शामिल होकर गैर इस्लामिक कृत्या करते है अभी आप ग़ालिब के बुत के पास खड़े होके ग़ालिब की स्तुतिगान किया था यह सब कुफ्र है यदि आप बुत परस्त ना हो तो ग़ालिब समेत तमाम औलिया चिश्ती. जितनी भी दरगाहे है सब को कम से कम आप ज़मीदोज करके माने अन्यथा धरम पर कुछ ना लिखने की कसम खाइए या इसलाम से तौबा कीजिये'
हमने उन्हें जवाब दिया कि
ऐ दोस्त ! अलविदा , ॐ शांति
@ मिश्रा जी ! आप मुझे इस देश का कानून तोड़ने के लिए क्यों उकसा रहे हैं ?
ग़ालिब का बुत और मज़ार मेरी प्रॉपर्टी नहीं हैं । उन्हें तोड़ने की बात कहकर आप मुझे क्राइम करने की प्रेरणा दे रहे और फिर भी अपनी मति पर हंसने के बजाए आप मेरी मति पर हंस रहे हैं ?
जहाँ गंभीर वार्तालाप चल रहा हो , वहां आप हंस क्यों रहे हैं ?
आप हंसने के बजाय तर्क दीजिए और बताईये कि मैं तो आपको वैदिक आचार और संस्कार के पालन की , देश के क़ानून के पालन की शिक्षा दे रहा हूं और उसका जवाब हाँ में देने के बजाय आप मुझे मूर्तियां और मज़ार तोड़कर जुर्म करने की दुष्प्रेरणा दे रहे हैं?
और जब मैं ऐसा जुर्म करने के लिए तैयार नहीं हूँ तो आप मुझे कंस कह रहे हैं ?
भाई मैंने कंस की तरह कब किसी का राज्य क़ब्ज़ाया या कब किसी की लड़कियां मारीं ?
आपने मुझे दुर्योधन कहा , दुर्योधन फिर भी ग़नीमत था पांडवों की अपेक्षा। पांडवो से एक लाख दरजे अच्छे तो आप ही हैं ।
जब आदमी तर्क देने के बजाय हंसने लगे और बुरे लोगों से उपाधियां देने लगे तो समझिए कि उसके पास अपने पक्ष को सत्य सिद्ध करने के लिए कोई भी तर्क मौजूद नहीं है ।
मेरी ताक़त मेरे विरोधियों का विरोध है। आपने मेरा विरोध किया , आपने मुझे मज़बूत किया। आप मुझे पढ़ते हैं तो भी आप मुझे मज़बूत ही करते हैं । आप मुझे पढ़ना बंद कर दीजिए मेरी ताक़त घटती चली जाएगी । आज आप यह प्रण कीजिए कि मेरा कोई भी ब्लाग आप हरगिज़ नहीं पढ़ेंगे।
अब आप आराम से अकेले हंसते रहिए , हम यहां से रूख़्सत होते हैं बिना हंसे ।
मालिक आपको और हमें सन्मार्ग दिखाए ।
आप भी विचार कीजिए कि अगर हरेक आदमी अपने धर्म का पूरी तरह पालन करे और देश के क़ानून को न तोड़े तो हमारे देश में कितनी शांति और खुशहाली आ जाएगी ?
लेकिन अफ़सोसे कि लोग इतनी सही बात को भी केवल इसलिए नहीं मानना चाहते कि इसे मानने के लिए उन्हें कष्ट उठाना पड़ेगा, अपने आप को बदलना पड़ेगा। ज़्यादातर आदमी जैसे हैं, उसी हाल में रहना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उन्हें उसी हालत में बहुत बड़ा धार्मिक और देशप्रेमी मान लें।
क्या यह रवैया सही है ?


'मूर्ति और मज़ार',Bad wish'