Tuesday, June 21, 2011

पिछले जन्म की ख़बरें देने वाले बच्चों की हक़ीक़त


अख़बारों में और टी. वी. चैनल्स पर आए दिन कुछ ऐसे बच्चे दिखाए जाते हैं जो बताते हैं कि वे पिछले जन्म में अमुक व्यक्ति थे और उनकी मौत ऐसे और ऐसे हुई थी और जब जाकर देखा जाता है तो कुछ बच्चे वाक़ई सच बोल रहे होते हैं। वे उन जगहों पर भी जाते हैं जहां उन्होंने कुछ गाड़ रखा होता है और उनके अलावा कोई और उन जगहों को नहीं जानता। वे खोदते हैं तो वहां सचमुच कुछ चीज़ें भी निकलती हैं। इस तरह के बच्चे भी जैसे जैसे बड़े होते चले जाते हैं। वे भूलते चले जाते हैं कि वे सब बातें जो वे पहले बताया करते थे जबकि वे अपने बचपन की बातें नहीं भूलते।
दरअस्ल उस बच्चे का यहां पनर्जन्म हुआ ही नहीं होता है और जो कुछ वह बता रहा था, उसे भी वह अपनी याददाश्त से नहीं बता रहा था। हक़ीक़त यह है कि हमारे अलावा भी हमारे चारों ओर अशरीरी चेतन आत्माएं मौजूद हैं। इन्हीं में कुछ आत्माएं किसी कमज़ोर मन को अपनी ट्रांस में लेकर बच्चे के मुंह से वही बोल रही होती हैं। जेनेरली इन्हें शैतान की श्रेणी में रख दिया जाता है क्योंकि ये परेशान करती हैं। इनके इलाज के लिए हम बच्चे को अज़ान सुनाते हैं। उसमें मालिक का पाक नाम है और उसकी बड़ाई का चर्चा है। एक बार ऐसा ही केस हमारे एक बुज़ुर्ग दोस्त मौलाना कलीम सिद्दीक़ी साहब के सामने लाया गया। उनके सामने भी वह बच्चा पिछले जन्म की बातें बताने लगा। इसी दरम्यान मौलाना चुपके से अज़ान के अल्फ़ाज़ दोहराए और चुपके से उस बच्चे पर फूंक मारी। यह अज़ान जब उस पर सवार शैतान आत्मा ने सुनी तो वह भाग खड़ी हुई। पिछले जन्म की बातें बताते बताते बच्चा अचानक ही ख़ामोश हो गया।
मौलाना ने बच्चे से पूछा कि हां, बताओ बेटा और क्या हुआ था आपके साथ पिछले जन्म में ?
तो वह चुप हो गया क्योंकि उसके मुख से जो बता रहा था वह तो भाग ही चुका था।
हिन्दू भाईयों के सामने इस तरह की घटनाएं आती हैं तो उन्हें लगता है कि आवागमन की उनकी मान्यता का प्रमाण हैं ये घटनाएं। वे इन्हें अजूबा बना लेते हैं। वे ऐसे बच्चों का रूहानी या मानसिक इलाज कराने के बजाय उन्हें सेलिब्रिटी बना लेते हैं। अख़बार वाले उनका इंटरव्यू छापते हैं और चैनल वाले भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि इन बच्चों के माता-पिता अज़ान सुनाकर इन्हें स्वस्थ कर सकते हैं और इस भ्रमजाल से अपने बच्चों के साथ ख़ुद को भी मुक्ति दिला सकते हैं।
अगर वे अज़ान न भी सुनाना चाहें वे अपनी भाषा के पवित्र मंत्र पढ़कर आज़मा सकते हैं। मालिक के पाक नाम तो हिंदी-संस्कृत में भी हैं और इन भाषाओं में उस मालिक की महानता का चर्चा भी है।
हरेक बच्चा इस दुनिया में फ़्रेश आता है। यह तर्क से तो साबित है ही, अनुभव से भी साबित हो चुका है।
अगर कोई इलाज न भी कराया जाए तब भी जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है और उसका मन मज़बूत होता जाता है। वह अज्ञात आत्मा की ट्रांस से ख़ुद ही मुक्त होता चला जाता है।
यह बात केवल कुछ बच्चों के लिए ही है। कुछ बच्चों के दावे तो अनुसंधान के बाद केवल माता पिता के सिखाने का परिणाम भी साबित हुए हैं। किसी बड़े आदमी के परिवार से अर्थलाभ की ख़ातिर माता-पिता ने अपने बच्चों को कुछ बातें रटवा दी थीं।
बहरहाल यह दुनिया है। सच्ची बात केवल मालिक जानता है और वही बता भी सकता है कि हक़ीक़त क्या है ?
जो बंदा उसे मानता है, उसकी वाणी को मानता है। वह इन सब छल फ़रेब का शिकार नहीं बनता। वह न किसी आवागमन को मानता है और न ही आवागमन से मुक्ति के प्रयास में जंगल में जाकर बेकार की साधनाएं करता है।
इंसान मुक्त ही पैदा हुआ है। उसे चाहिए कि वह समाज में रहे। अपने कर्तव्यों का पालन करे। अपने इरादे से कोई पाप न करे और अगर कोई हो जाए तो तुरंत उस कर्म को त्याग दे। उसका प्रभु पालनहार उससे केवल यही चाहता है।
इस संबंध में इसी चर्चाशाली मंच की एक पोस्ट और भी उपयोगी है

आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman



और आप एक नज़र इस पोस्ट पर भी डाल सकते हैं
http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html?showComment=1308721446104#c8240670385752030936
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http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/8910218.cms

Tuesday, June 7, 2011

'साधु और संग्रह' - Shiv Kumar Goyal



शिवकुमार गोयल जी एक लेखक हैं। आज 'अंतर्यात्रा' कॉलम में मैंने उनके एक छोटे से लेख 'साधु और संग्रह' पढ़ा जो कि अमर उजाला दिनाँक 14 मार्च 2011 के अंक में पृष्ठ सं. 12 पर छपा है। उसका एक अंश यहाँ उद्धृत है :
'संसार से वैराग्य होने पर कुछ लोग गृहस्थी त्यागकर साधु -संयासी बन जाते हैं। वे कई बार आधुनिकता की चकाचौंध में फँसकर भगवत भजन और सांसारिक लोगों का मार्गदर्शन करने के बजाए चेले बनाने और भव्य आश्रमों के निर्माण में लग जाते हैं। यह ग़लत है। विरक्त संत उड़िया बाबा कहा करते थे ,'यदि सांसारिक ऐश्वर्य में जीने की लालसा है तो साधु बनने की क्या आवश्यकता थी ? असली साधु-संयासी के लिए तो धर्म ग्रंथों में किसी भी प्रकार के संग्रह वर्जित बताया गया है , तो फिर चेले-चेलियाँ बनाने और आश्रम तैयार करने की आकांक्षा पालना उचित नहीं।'
आज के समय में अब उसे ही बड़ा संत माना जाता है , जिसके आश्रम जहाँ-तहाँ फैले होते हैं। इन कथित संतों के शास्त्र विरुद्ध और मर्यादाहीन जीवन जीने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।' 
इस अहम चर्चा को आप ‘परिचर्चा‘ पर भी देख सकते हैं:

और भाई ख़ुशदीप जी की चर्चा भी एक यादगार चर्चा है। यह चर्चा अपने आप में एक आईना है।